करहल। करहल से सपा प्रमुख अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे आगरा के सांसद और कैबिनेट मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल का सैफई परिवार से सियासी मोर्चा लेने का अनुभव पुराना है। बघेल इस परिवार के लोगों के खिलाफ भले ही एक भी चुनाव न जीते हों, लेकिन मुलायम के कुनबे के लिए मुश्किल जरूर खड़ी करते रहे हैं।
बघेल ने 2009 में लोकसभा का आम चुनाव फिरोजाबाद लोकसभा सीट से अखिलेश यादव के खिलाफ लड़ा था। तब अखिलेश कन्नौज से भी चुनाव लड़े थे। अखिलेश ने कहा था जिस सीट से अधिक वोटों से जीतेंगे वही सीट अपने पास रखेंगे। तब फिरोजाबाद जिला सपा का मजबूत गढ़ था। अखिलेश को उम्मीद थी कि यादवों के इस गढ़ में वो कन्नौज से अधिक वोटों से जीतेंगे। तब बघेल ने बसपा से अखिलेश के खिलाफ ताल ठोंकी थी। बघेल भी जानते थे कि चुनाव अखिलेश ही जीत रहे हैं, लेकिन वो जीत का अंतर कम करने में जुटे रहे। बघेल ने अपने राजनीतिक गुरु मुलायम सिंह से सीखे सियासी दांव-पेंच का इस्तेमाल उन्ही के बेटे के खिलाफ किया। अखिलेश यहां से लगभग 65 हजार वोटों से चुनाव जीते। जबकि उन्हें उम्मीद थी कि वो एक लाख से अधिक अंतर से जीतेंगे। इस जीत से वो मायूस हुए और उनकी मायूसी का कारण बने बघेल। अखिलेश ने फिरोजाबाद से इस्तीफा दे दिया। जबकि बघेल हार कर भी खुश थे।
2009 में ही फ़िरोज़ाबाद सीट पर लोकसभा का उप चुनाव हुआ। यहां से अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारा। डिंपल सैफई परिवार की पहली महिला थी जो राजनीति में आई थीं। डिंपल के खिलाफ फिर बघेल ने ही ताल ठोंकी। बघेल ने डिंपल को जीतने नहीं दिया, उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी फ़िल्म अभिनेता राजबब्बर की राह आसान कर दी। डिंपल की हार से मुलायम का कुनबा सियासी सदमे में आ गया था, लेकिन बघेल अपने राजनीतिक गुरु को पटकनी देकर खुश थे।
सैफई परिवार के एक और सदस्य के खिलाफ बघेल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में दो-दो हाथ किया। इस चुनाव में वो भाजपा की टिकट पर सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव के खिलाफ चुनाव लड़े। इस चुनाव को अक्षय यादव जीत तो गए लेकिन बघेल ने इस चुनाव में भी सैफई परिवार को कड़ी मशक्कत करा दी थी। सैफई परिवार से बार-बार मोर्चा लेने के अनुभव को देखते हुए ही भाजपा ने बघेल को अखिलेश यादव की घेराबंदी के लिए मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा के अखाड़े में उतारा है। नतीजे का इंतजार कीजिए….।