-गौरव प्रताप सिंह-
आगरा। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की एमएससी छात्रा की विवि ने कॉपी खो दी। पेपर में एमडब्ल्यू लगा दिया। छात्रा ने उपस्थिति सीट और बुकलेट लेकर परीक्षा नियंत्रक के सामने कई बार चक्कर लगाए। कहा कि उसने पेपर दिया था, फिर भी चौथे पेपर में एमडब्ल्यू लगा आया है। छात्रा उनके सामने रोई, गिड़गिड़ाई लेकिन परीक्षा नियंत्रक का दिल नहीं पसीजा। छात्रा ने परीक्षा नियंत्रक की लचर कार्यशैली और अपने भविष्य की चिंता को देख री एग्जाम दे दिया। छात्रा के री एग्जाम में भी 98 अंक आए। छात्रा ने टॉप करता देखकर भी अपना नाम मेडल सूची में नहीं होता देख मेडल देने की मांग की। विवि ने उसे टॉपर देख भी टहलाया और कहा कि उसने री एग्जाम दिया है। री एग्जाम देने वाले बच्चे को मेडल नहीं दिया जाता। सूत्रों का कहना है कि छात्रा ने कोर्ट जाने की धमकी दी। इसके बाद विवि अधिकारियों ने अपने को फंसता देख छात्रा को मेडल देने का निर्णय ले लिया है।
बता दें कि स्मृति सिंह सिसौदिया ने केआरआरसीएम कॉलेज मैनपुरी से एमएससी रसायन विज्ञान में किया है। छात्रा के प्रथम वर्ष में 600 में से 580 नंबर यानि की 96.66 प्रतिशत अंक आए। इतने नंबर आने के बाद छात्रा ने मेडल की उम्मीद में द्वितीय वर्ष में भी दिन-रात पढ़ाई की। छात्रा के द्वितीय वर्ष के चारों पेपर बहुत अच्छे हुए। छात्रा के प्रथम पेपर में 100 में से 96, द्वितीय में 92, तृतीय में 98 नंबर आए। छात्रा को क्या पता था कि फर्जीवाड़े और घोटाले से आंबेडकर विवि में उसकी कॉपी गायब कर दी जाएगी। विवि ने छात्रा के चौथे पेपर में एमडब्ल्यू लगा दिया। छात्रा यह देख तनाव में आ गई। क्यों कि उसने पेपर दिया था। सबूत के तौर पर छात्रा के पास उपस्थिति सीट और चौथे पेपर की परीक्षा केंद्र पर जमा हुई ओएमआर पेपर की बुकलेट भी थी। वह यह दोनों लेकर परीक्षा नियंत्रक के पास आई और कहा मैंने पेपर दिया था फिर भी चौथे पेपर में एमडब्ल्यू आ गया है। परीक्षा नियंत्रक ने उसकी एक नहीं सुनी और टहला दिया। छात्रा ने परीक्षा नियंत्रक के अनेकों चक्कर लगाए। हर बार एक ही जवाब मिला तुम्हारी कॉपी खो गई है। छात्रा ने परीक्षा नियंत्रक से यह भी कहा कि मैं टॉपर हूं। मेरे प्रथम वर्ष में सर्वाधिक नंबर थे। द्वितीय वर्ष में भी तीन पेपर में 90 से ऊपर नंबर हैं, लेकिन परीक्षा नियंत्रक ने उसकी एक नहीं सुनी। अपने भविष्य की चिंता को लेकर छात्रा परीक्षा नियंत्रक के सामने सामने रोई, गिड़गिड़ाई लेकिन परीक्षा नियंत्रक ने उसकी कॉपी नहीं सर्च कराई। इसके बाद छात्रा को मजबूरी में री एग्जाम में बैठना पड़ा। री एग्जाम में भी छात्रा ने 98 अंक हासिल किए।
इधर 29 मार्च को विवि का दीक्षांत समारोह था। विवि छात्रा की जगह दूसरी छात्रा श्रेया गर्ग को मेडल दे रहा था। स्मृति सिंह विवि में आई और कहा कि मेडल उसे मिलना चाहिए। री एग्जाम में भी 100 में से उसके 98 नंबर आए हैं। विवि प्रशासन बोला री एग्जाम वाले को मेडल नहीं दिया जाता है। इसके बाद छात्रा ने कहा कि आपकी लापरवाही से मेरी कॉपी गायब हुई है, मेरी से नहीं। मुझे तो दूसरी बार पेपर और देना पड़ा। छात्रा हाईकोर्ट में न चली जाए। इस डर से विवि ने अब उसे ही मेडल देने का निर्णय लिया है और मेडल सूची से श्रेया का नाम हटाकर उसका नाम डाल दिया है। श्रेया के 1200 में से 1104 और स्मृति के 1160 नंबर हैं।
इधर सवाल यह भी खड़े हो रहे हैं कि आखिर परीक्षा नियंत्रक के ऊपर कुलपति क्या कार्रवाई करेंगे। कार्रवाई इसलिए बनती है क्यों कि छात्रा ने जब पेपर दिया था और उसके पास इस बात के साक्ष्य भी थे तो परीक्षा नियंत्रक ने छात्रा की शिकायत को गंभीरता से क्यों नहीं लिया। छात्र नेता राहुल पाराशर का कहना है कि परीक्षा नियंत्रक छात्रों का भविष्य चौपट कर रहे हैं। अपर मुख्य सचिव शिक्षा को पत्र लिखकर उन्हें निलंबित करने की मांग की जाएगी। वहीं इस मामले में पीआरओ प्रोफेसर प्रदीप श्रीधर का कहना है कि छात्रा की कॉपी खो गई थी लेकिन विश्वविद्यालय ने अपनी गलती में सुधार किया है और उसे मेडल दिया जा रहा है।