ऋषि चौहान
एटा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जादुई व्यक्तित्व के धनी हैं। मोदी भाजपा के बहुत बड़े ब्रांड हैं। उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में विधानसभा चुनावों की जीत और 2014, 2017, 2019 और 2022 की लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनावों की जीतों के बाद ऐसे ही तमाम विशेषण पीएम मोदी के लिए गड़े जा रहे हैं। बावजूद इसके एक कड़वी सच्चाई भी सामने है 11 फरवरी को पटियाली में विशाल जनसभा करने के बावजूद भी मोदी अपने जादुई व्यक्तित्व से पटियाली सीट भाजपा को नहीं जिता सके। यह दाग उनकी छवि पर है व्यक्तित्व पर है या स्थानीय परिस्थितियों पर? यह समीक्षा का विषय है। कदाचित पटियाली सीट पर 11 फरवरी को मोदी की बड़ी रैली के बाद भी मुस्लिम बाहुल्य पटियाली सीट भाजपा नहीं जीत सकी।
इस पटियाली सीट पर बसपा प्रत्याशी नीरज मिश्रा भी भाजपा की हार का बड़ा कारण हैं, उनकी उपस्थिति में भाजपा का कोर वोटर ब्राह्मण भाजपा से दूर रहा।
कासगंज सदर सीट पर सपा ने पूर्व मंत्री मान पाल सिंह वर्मा को उतारकर बड़ा दांव खेला था लेकिन मतदान से एक सप्ताह पूर्व एक निजी चैनल के कार्यक्रम में सपाइयों की गुंडई उनकी हार का कारण बनी। संदेश यह गया के जीतने से पहले सपाई इतना गदर कर रहे हैं तो बाद में क्या करेंगे? हालांकि सपा प्रत्याशी मान पाल सिंह वर्मा ने अपने पुराने संबंधों का वास्ता देकर कासगंज विधानसभा क्षेत्र में गांव-गांव और घर-घर पैमाइश की थी लेकिन वे सपा को नहीं जिता पाए। कदाचित भाजपा विधायक ममतेश शाक्य भाजपा के चहेते हैं क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्या के विद्रोह के समय उन्होंने और केशव मौर्य का साथ दिया था। केशव के प्रयासों के चलते मोदी की जनसभा हुई लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि सिराथू से केशव मौर्य भी चुनाव हार गए। उम्मीद है केशव मौर्य और ममतेश दोनों ही को भाजपा एडजेस्ट करेगी।
कासगंज जिले में पिछले 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने तीनों सीटों पर केसरिया परचम लहराया था, लेकिन 2022 के चुनाव में भाजपा यह करिश्मा नहीं दोहरा सकी। कासगंज वैसे भी भाजपा और आरएसएस का पुराना गढ़ है। अमापुर लोधी बहुल है। इस सीट पर लोधी और काछीयों के समीकरण के चलते ही भाजपा अधिकांश चुनाव जीती है। यह सीट कल्याण सिंह के सजातियों का गण है। इसीलिए यहां नवोदित हरिओम वर्मा भाजपा के टिकट पर जीतने में सफल रहे।