ऋषि चौहान
एटा सुरक्षित सीटों की कमोबेश यही फितरत है। इन सीटों पर मतदाता यानी एससी वोटर निर्णायक नहीं होते। इन सीटों पर सवर्ण मतदाता ही निर्णा होते हैं। जलेसर सुरक्षित सीट की कमोबेश यही स्थिति है कि यह सुरक्षित होकर भी एससी के लिए ज्यादा सुरक्षित नहीं है।
इतिहास गवाह है कि पिछले हुए चुनावों में महज दो बार ही जाटव कास्ट के प्रत्याशी जीत सके हैं। पहली बार केंद्रीय मंत्री रामजी लाल सुमन और दूसरी बार रघुवीर सिंह जाटव। बाकी चुनाव में नट, धोबी और अन्य एससी जाति के प्रत्याशी जीतते रहे हैं। कांग्रेस के प्रेमपाल सम्राट, अनार सिंह दिवाकर चुनाव जीत चुके हैं। माधव नट तो जनसंघ के टिकट पर 3 बार इस सीट से चुनाव जीते थे।
अतीत के चुनाव इस बात का प्रमाण है कि इस सीट पर ठाकुर और सवर्ण मतदाता निर्णायक साबित हुए हैं। जातीय गणित की बात करें तो 70000 यादव हैं तो 20 हजार मुस्लिम, 40000 जाटव हैं। ठाकुर मतदाताओं की संख्या 45 हजार तो बघेल, कुशवाहा सहित अन्य पिछड़े मतदाता यादव मतों पर भारी है। यानी इन मतदाताओं की संख्या 70000 के पार है।
मौजूदा 2022 के चुनाव में प्रारंभिक रुझानों को ध्यान में रखें तो भाजपा के मौजूदा विधायक और भाजपा प्रत्याशी संजीव दिवाकर के साथ पिछली जैसी हवा नहीं है। केंद्रीय मंत्री रामजीलाल सुमन के बेटे रणजीत सुमन उन पर 21 नजर आ रहे हैं लेकिन इस चुनाव को आगरा के जूता व्यवसाई आकाश त्रिकोणीय बना रहे हैं। चुनावी मैदान में कुल 13 प्रत्याशी हैं। शेष निर्दलीय हैं।
मौजूदा चुनाव में कल नामांकन समाप्ति तक जलेसर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में तस्वीर अभी धुंधली नजर आ रही है। सपा के रणजीत सुमन और भाजपा के संजीव में जोरदार मुकाबला है। बसपा के आकाश इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगे हुए हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में मतदान 20 फरवरी को होना है। देखना है मतदान के आखिर तक चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है?
सवाल पिछले विधान सभा चुनाव 2017 का है तो उस चुनाव में भाजपा के संजीव दिवाकर निर्वाचित हुए थे उन्होंने सपा के रणजीत सुमन को हराया था। संजीव कुमार को 81502, 40% वोट मिले थे और उनके निकटतम रहे रणजीत सुमन को 61694 मत मिले थे। बसपा के मोहन सिंह को 35817 वोट मिले थे। चुनाव में 9 प्रत्याशी मैदान में थे।
इस चुनाव में प्रत्येन्द्र पाल उर्फ़ पप्पू भैया, ठाकुर नेता पम्मी ठाकुर सहित तमाम ठाकुर नेता प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं। इस बार भी पूरा दारोमदार नॉन यादव और सवर्ण मतदाताओं के ऊपर है। देखना है 20 फरवरी तक चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है?