आगरा। पूर्व कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक के द्वारा डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में संविदा और अतिथि प्रवक्ताओं की जो नियुक्ति की गई थी, उसमें बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। एसटीएफ की जांच में कई ऐसे तथ्य सामने आए हैं जिसके बाद पूर्व कुलपति की इस मामले में भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
पूर्व कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक ने मई महीने में Rw2 नाम से विज्ञापन दिया। इसमें कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग और फार्मेसी में संविदा और अतिथि प्रवक्ताओं की भर्ती निकाली गई। इसके बाद उन्होंने RW3 नाम से एक और विज्ञापन निकाला। इसमें रोस्टर का भी पालन नहीं किया गया। साथ ही उन्होंने परीक्षा कराने के तीन दिन बाद ही साक्षात्कार की तिथि घोषित कर दी, जबकि नियम के मुताबिक परीक्षा के 15 दिन बाद साक्षात्कार होना चाहिए। ऐसे में कई अभ्यर्थियों को साक्षात्कार का पता ही नहीं चला। वे हाईकोर्ट में भी नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने के लिए जा रहे हैं।
इधर पूर्व कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक ने ऐसे लोगों को नियुक्ति दे दी जो प्री पीएचडी कोर्स कर रहे हैं। अन्य जगहों से रेगुलर पीएचडी कर रहे हैं। वहीं वह सिर्फ पीएचडी हैं और नेट नहीं हैं। जबकि अनुबंध पर उन्हीं शिक्षकों को रखा जा सकता है जो नेट और पीएचडी दोनों ही हों। इस विश्वविद्यालय में उन लोगों को भी नियुक्ति दे दी गई है जो प्री पीएचडी कोर्स कर रहे हैं। यह देखकर एसटीएफ भी हैरान हो गई है। इसके अलावा एक खेल और खेला गया है। कुछ चहेते शिक्षकों के विभागों में उन्होंने भर्ती कर दी। यह शिक्षक यहां न पढ़ाकर दूसरे संस्थानों में पढ़ाने के लिए जा रहे हैं। सूत्रों की माने तो गणित विभाग में पांच शिक्षकों की नियुक्ति की गई है। यह शिक्षक कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग और अन्य विभागों में पढ़ाने के लिए जाते हैं। जिन विभागों में शिक्षकों की आवश्यकता थी, वहां उनकी नियुक्ति ना कर दूसरे विभागों में क्यों की गई है। यह सवाल खड़े हो रहे हैं। जबकि शासनादेश के मुताबिक शिक्षक की नियुक्ति जिस संस्थान में होती है और जिस कोर्स के लिए होती है वह उसी संस्थान में और उसी कोर्स में पढ़ा सकता है।
इधर प्रोफेसर विनय कुमार पाठक के केस में कल हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। सभी की निगाहें हाईकोर्ट में सुनवाई पर टिकी हुई हैं। एसटीएफ के द्वारा भुगतान से संबंधित सभी फाइलें लखनऊ भेज दी गई हैं। प्रोफेसर विनय कुमार पाठक ने डिजिटेक एजेंसी का कितना भुगतान किया था, उससे संबंधित पत्रावली भी भेज दी है। जिन-जिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पाठक तैनात रहे हैं। वहां उनके कई फर्जीवाड़े और धांधली एसटीएफ ने पकड़ लिये हैं। आलम यह हो गया है कि एसटीएफ जिस मामले की भी गहराई से जांच कर रही है, उसी में धांधली निकल रही है।
प्रोफेसर पाठक से जुड़े नौकरशाह भी तनाव में
विशेष सूत्रों की मानें तो एसटीएफ की जांच में यह भी सामने आया है कि प्रोफेसर विनय कुमार पाठक से कई नौकरशाह भी जुड़े हुए हैं। एक सीनियर आईएएस की उनसे नजदीकी मिल रही हैं। यह भी मुख्यमंत्री की रडार पर बताए जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने भी एक एजेंसी के भुगतान में प्रोफेसर पाठक से सिफारिश की थी। मामले में मुख्यमंत्री के गंभीर होने के बाद नौकरशाहों की भी हालत खराब है।