-गौरव प्रताप सिंह-
आगरा। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय में बीते तीन महीने से आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का वेतन नहीं मिला है। इस वजह से कुछ के घर में चूल्हे भी नहीं चल पा रहे। इससे ब्याज पर पैसा लेकर वह राशन खरीद रहे हैं।
विश्वविद्यालय में डेली बेसिस पर जो कर्मचारी कार्य करते थे, उनको दिल्ली की एक कंपनी के माध्यम से विश्वविद्यालय में रख लिया गया। इनकी संख्या करीब 180 है। अंतिम वेतन अक्टूबर माह का मिला था। नवंबर दिसंबर और जनवरी माह का उन्हें वेतन नहीं मिला है। क्योंकि कंपनी का अनुबंध अक्टूबर माह में खत्म हो गया था। रोजाना के इन्हें कुशल और अकुशल 349, 280 रुपये मिलते हैं। इनका पूरा परिवार इसी पैसे पर निर्भर रहता है। तीन महीने से वेतन नहीं मिलने पर कई परिवारों में खाने के लाले पड़ गए हैं। वह ब्याज पर पैसा लेकर घर का राशन ला रहे हैं। इसके साथ ही विश्वविद्यालय के सभी अधिकारियों को कोस रहे हैं। आउटसोर्सिंग कर्मचारियों कहना है कि उन्होंने कुलपति से भी कई बार मांग की है लेकिन कुलपति उनकी कोई सुनवाई नहीं कर रहीं।
छात्रों की भी नहीं हो रही सुनवाई
विश्वविद्यालय जनवरी बीतने पर भी परीक्षा फॉर्म नहीं भर पा सका है। ना ही अभी तक उसके द्वारा एजेंसी फाइनल की गई है। परीक्षाएं लेट होने से सत्र भी लेट हो गया है। छात्रों की समस्याओं की भी कोई सुनवाई नहीं हो रही। मार्कशीट और डिग्री संबंधी सारा काम बंद पड़ा हुआ है। इससे छात्र भी विश्वविद्यालय के अधिकारियों को कोस रहे हैं। छात्रों का कहना है कि वर्तमान में विश्व विद्यालय के हालात बद से बदतर हो गए हैं।
सिर्फ केंद्र बनाने पर ध्यान
आगरा। सारे काम बेशक बंद पड़े हो लेकिन विश्वविद्यालय का असली फोकस केंद्र बनाने पर है। सूत्रों का कहना है कि इतनी जांच होने के बावजूद एक दागी को केंद्र बनाने का काम दिया गया है। दो प्रोफेसरों के द्वारा वसूली करने की भी चर्चाएं हैं। बता दें कि केंद्र बनाने में विश्वविद्यालय में जमकर भ्रष्टाचार होता है। एक ही मैनेजमेंट के कॉलेज आपस में केंद्र बना दिए हैं। इसके साथ ही जिस कॉलेज वाले को जहां अपना सेंटर डलवाना होता है, वह वहां अपना सेंटर डलवा लेता है चाहे वह 80 किलोमीटर दूर हो।
विश्वविद्यालय में कोई भी दो एक नहीं
विश्वविद्यालय में वर्तमान में शिक्षकों में आपसी तालमेल सही नहीं चल रहा है। पूर्व के एक अधिकारी के द्वारा उनमें ऐसी फूट डलवा दी गई है कि यहां कोई भी दो, एक नहीं है। पूर्व में जिस प्रकार शिक्षक एक दूसरे के सुख दुख में साथ देते थे या संवेदनाएं व्यक्त करते थे वह सब चीजें खत्म हो गई हैं। सभी एक दूसरे से कट रहे हैं। कई प्रोफेसर जो काम के लालच में कुलपति के इर्द-गिर्द घूमते थे उन्होंने भी जाना बंद कर दिया है। सिर्फ दो प्रोफेसर ही नजदीक बताए जा रहे हैं।