-गौरव प्रताप सिंह-
आगरा। डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के एक कर्मचारी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर परिवार सहित आत्महत्या करने की अनुमति मांगी है। पत्र में उन्होंने कहा है कि विश्वविद्यालय में दोबारा नौकरी देने के लिए उनसे 10 लाख रुपए की रिश्वत मांगी जा रही है। उनके पास रिश्वत देने के लिए पैसे नहीं है। परिवार दर-दर की ठोकरें खा रहा है। इसलिए परिवार के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
वीरेश कुमार ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में लिखा है कि उन्होंने विश्वविद्यालय में संविदाकर्मी के रूप में 24 साल तक काम किया है। 24 साल तक उन्होंने विश्वविद्यालय के हित में ही कार्य किए हैं। इसका उदाहरण है कि 24 साल में उनके ऊपर कोई आरोप नहीं लगा। उनका कहना है कि उन्हें डॉक्टर अनिल कुमार वर्मा व अन्य लोगों ने फर्जी तरीके से फंसा कर विश्वविद्यालय से निकलवा दिया। जबकि डॉ. अनिल कुमार वर्मा सहित कई अन्य के खिलाफ विजिलेंस ने भ्रष्टाचार सहित कई अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। इन्हें दोषी भी पाया गया है।
वीरेश कुमार ने कहा है कि उनके खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं मिले थे और उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया। उन्होंने जब न्यायालय में केस कर दिया तो उनसे कहा गया कि केस वापस लेने पर दोबारा नौकरी पर बहाल कर देंगे। लेकिन आज तक विश्वविद्यालय ने बहाल करने को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया है। इस संबंध में वह कुलपति से भी मिले। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्ट्रार पवन कुमार से मिल लो। वह उनसे मिले तो उन्होंने नौकरी बहाली के लिए 10 लाख रुपए की डिमांड की। पवन कुमार ने कहा कि मेरी कुलपति और रजिस्ट्रार से बात हो गई है, जिस दिन आप 10 लाख रुपए दे देंगे आपको बहाल कर दिया जाएगा। वीरेश कुमार ने कहा है कि उनके पास 10 लाख रुपये देने के लिए नहीं है क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। इसलिए परिवार सहित आत्महत्या करने की अनुमति दे दी जाए। इधर विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने आरोपों को निराधार बताया है।
