-गौरव प्रताप सिंह-
आगरा। कहते हैं थानेदार थाने का मालिक होता है। उसकी मर्जी के बिना न कोई पकड़ा जाता है और न ही कोई छूट सकता है। अधिकारी यह जानते हैं। मगर जब भी कोई मामला फंसता है तो इस हकीकत को मानते नहीं हैं। कमिश्नरेट में गजब खेल है। बड़े-बड़े कांड हो जाते हैं। थानेदार बच जाते हैं और सिपाही फंसा दिए जाते हैं। सिपाही महकमे का सबसे छोटा कर्मचारी है। उसका कोई आका नहीं होता। थानेदार तो खिलाड़ी होता है। फंसने पर सिफारिश भी बड़ी-बड़ी कराता है। कमिश्नरेट के सिपाही परेशान हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर क्या करें? उनकी पीड़ा किसी को दिखाई क्यों नहीं पड़ती। क्या उनकी मर्जी से थाने में कोई बड़ा खेल हो सकता है। यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है। आगरा कमिश्नरेट में तीन ऐसे उदाहरण हैं जिनमें थाना प्रभारी बच कर निकल गया और सिपाही पर कार्रवाई की तलवार चला दी गई। कुछ थानेदार तो ऐसे हैं जो बेशक जिला छोड़कर चले गए हैं लेकिन उनका जलवा आज भी कायम है। किसी भी मामले में फंसने पर उनके आका उन्हें बचाने के लिए लगे रहते हैं। अब आगरा कमिश्नरेट के उन तीन मामलों पर नजर डालते हैं जिनमें थानेदार बच गए सिपाही फंस गए।
केस एक
नगला शेख, सादाबाद, हाथरस निवासी आईटीबीपी के जवान सूरज की पत्नी की 9 मार्च को अलीगढ़ मार्ग पर आलू से लदे ट्रैक्टर ट्राला की चपेट में आकर मौत हो गई थी। सूरज के भाई धीरज ने थाना खंदौली में चालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। पुलिस ने टक्कर मारने वाले ट्रैक्टर ट्रॉली को हटवाकर दूसरा ट्रैक्टर खड़ा करा दिया।
मामला तूल पकड़ा तो सिपाही प्रवीण कुमार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया। सिपाही ने इंटरनेट मीडिया पर वीडियो शेयर कर आरोप लगाए। कहा कि मामला एसओ राजीव सोलंकी का था। एक सिपाही की इतनी औकात नहीं है की एक ट्रैक्टर को चेंज कर सके बिना विवेचक और एसओ के। उसे बलि का बकरा बनाया जा रहा है। वीडियो वायरल होने के बाद एसीपी एलआईयू को भी जांच के लिए थाने में भेजा गया था। जांच में पाया गया था कि मुकदमा बाद में दर्ज हुआ था ट्रैक्टर चालक से जमानती नोटिस पहले ही भरवा लिया गया था। इसके बावजूद थानाध्यक्ष राजीव सोलंकी पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। सिपाही अभी भी फंसा हुआ है उसके खिलाफ मुकदमा कायम है।
केस- 2
आवास विकास कालोनी सेक्टर 12 बी निवासी बनवारी ने शिकायत की थी कि 14 अक्तूबर 2023 को देहरादून से बड़े भाई का उसके पास फोन आया। बताया कि गांव नगला मुरली, रुनकता में पिता वीरेंद्र सिंह और परिवार की महिलाओं के साथ कुछ लोगों ने मारपीट की है। उस समय वह गुरुद्वारे के पास था। उसने 112 नंबर पर फोन किया। मदद नहीं मिली तो रुनकता चौकी पर गया। वहां सुनवाई नहीं होने पर वह सिकंदरा थाने आया। पुलिस ने सुनवाई की बजाए उसे ही थाने में बैठा लिया। पिता और एक भाई भी साथ थे। छोड़ने के एवज में उससे 30 हजार रुपये रिश्वत मांगी गई। रिश्वत का आरोप तत्कालीन इंस्पेक्टर आनंद कुमार शाही और महिला कांस्टेबल अंजलि पर लगाया। शिकायत में कहा कि उसके पिता पर उस समय महज दस हजार रुपये थे। उसने थाने के अंदर ही क्रेडिट कार्ड पर लोन लिया। ऑन लाइन रकम अपने दोस्त को ट्रांसफर की। वह अपने एटीएम से रुपये निकालकर लेकर आया। रात में दो बजे 30 हजार रुपये लेकर पुलिस ने उसे छोड़ा।
शिकायत पर प्रारंभिक जांच एसीपी ताज सुरक्षा सैयद अरीब अहमद को दी गई थी। उन्होंने अपनी जांच में तत्कालीन इंस्पेक्टर आनंद कुमार शाही और महिला आरक्षी अंजलि को दोषी पाया था। विभागीय जांच एसीपी लोहामंडी मयंक तिवारी को दी गई। उन्होंने महिला आरक्षी को रिश्वत लेने के आरोप में दोषी पाया है। इंस्पेक्टर को क्लीन चिट दे दी गई है। सवाल यह खड़े हो रहे हैं कि भला महिला सिपाही की इतनी मजाल कहां है कि वह किसी आरोपी को थाने से छोड़ सके। क्या वह थाना प्रभारी से ऊपर थी। इंस्पेक्टर के बारे में बताया जाता है उनके विभाग में कई आका हैं जो उनके लिए हर समय तैयार रहते हैं।
केस- 3
एक रील वायरल हुई थी, जिसमें गाड़ी के डैशबोर्ड पर नोटों की कई गड्डियां पड़ी हुई दिखाई दे रही थीं। गाना बज रहा था छोरी चिल्लावे पैसा ही पैसा। चर्चाएं थी कि थानाध्यक्ष अनिल शर्मा का कारखास बैग लेकर गया था, उसमें से कुछ गड्डियां निकाल कर डैशबोर्ड पर रखी गई थी और रील बनाई गई थी। मामला सुर्खियों में आने के बाद पुलिस कमिश्नर ने एसीपी फतेहाबाद आनंद पांडे को जांच दी थी। एसीपी फतेहाबाद आनंद पांडे की जांच में यह सामने आया था कि दरोगा नितिन की गाड़ी को कारखास सुमित गुर्जर और एक प्राइवेट व्यक्ति सतीश ले गए थे। इसके बाद दरोगा को निलंबित कर दिया गया था। सिपाही को लाइन हाजिर। लेकिन थानाध्यक्ष अनिल शर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। जबकि दरोगा ने बयान में बताया था कि कांस्टेबल उनकी गाड़ी मांगने आया था और कहा था कि थानाध्यक्ष अनिल शर्मा का यह थैला एनसीआर क्षेत्र में जाना है। दरोगा ने जब पूछा इसमें क्या है तो उसने बताया था इसमें 27 लाख रुपए हैं। यही देने के लिए जा रहा हूं। उसने अपनी गाड़ी यह सोच कर दे दी कि वह नहीं देंगे तो थानाध्यक्ष बुरा मान जाएंगे। इधर थानाध्यक्ष को एसीपी ने बयान देने के लिए बुलाया और पूछा कि आपने थैला भेजा था या नहीं? इस पर उन्होंने कहा था कि उन्होंने थैले में अपने रिश्तेदारों के पास कपड़े भेजे थे। तत्कालीन एसीपी ने कहा कि भला ऐसे कैसे हो सकता है यहां से कपड़े एनसीआर में भेजे जा रहे हैं। इसका उन्होंने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था और अधूरा जवाब देने के बाद वहां से चले गए थे। एसीपी आनंद पांडे ने उनको नोटिस देकर उनसे उन रिश्तेदारों का नाम पूछा था जिनके पास थैला गया था। वह यहीं तक जांच कर पाए थे। इसी दौरान डीसीपी ने अपना तबादला होने वाले दिन जांच एसीपी पिनाहट अमरदीप सिंह को दे दी। इधर एसीपी पिनाहट ने जांच में थानाध्यक्ष को दोषी माना था। इसके बाद भी उनके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई नहीं हुई। उनकी 14 (1) की जांच चल रही है फिर भी वह चौकी प्रभारी बने हुए हैं। वहीं दरोगा को निलंबित कर दिया गया था। उसका दोष इतना था उसने अपनी गाड़ी दी थी सिपाही को लाइन हाजिर कर दिया गया था उसका दोष इतना था वह उनका थैला लेकर गया था। लेकिन जिनका थैला लेकर गया था वह आज तक कार्रवाई से दूर हैं।