– गौरव प्रताप सिंह-
आगरा। डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय में एक अधिकारी के द्वारा शिक्षकों के ग्रुप पर एक मैसेज डालकर सर्दी में भी गर्मी पैदा कर दी है। विशेष सूत्रों की मानें तो उनके इस मैसेज ने शिक्षकों के बीच में हालात काफी विस्फोटक बना दिए हैं। कैंपस में माहौल पढ़ाई लिखाई की जगह राजनीतिक हो गया है।
विश्वविद्यालय के इतिहास में पिछले 20-25 दिनों में पहली बार शिक्षकों के बीच में बड़े स्तर पर गुटबंदी देखने को मिल रही है। एक गुट इसलिए खुश है क्योंकि उस पर प्रदेश के सबसे बलशाली अधिकारी का हाथ है। दूसरा गुट इसलिए दुखी है क्योंकि उस पर कथित फर्जी आरोप लगाकर दबाव में लेने की कोशिश की जा रही है। इसी बीच देर रात अधिकारी ने शिक्षकों के ग्रुप में एक मैसेज डालकर दोनों गुटों की रंजिश को और बढ़ा दिया है।
दरअसल अधिकारी ने शिक्षकों के ग्रुप पर मैसेज डाला कि एनएसयूआई के पदाधिकारियों द्वारा जो धरना दिया जा रहा है, उसमें विश्वविद्यालय के तीन शिक्षकों का हाथ है। अधिकारी ने यह भी सफाई दी कि उन्हें यह मैसेज किसी ने भेजा है। इधर मैसेज में अधिकारी के द्वारा जो तीन नाम लिखे गए थे उन नामों को देखकर सभी शिक्षकों के बीच में खलबली मच गई। तीनों शिक्षकों के साथ उनसे जुड़े कई शिक्षकों को अपने विश्वविद्यालय के ही दो शिक्षकों में से किसी एक पर मैसेज करने का शक है। अब यह बात तो अधिकारी को ही पता है कि उन्हें मैसेज करने वाला दोनों शिक्षक में से कोई एक है या यह उन्हीं की चाल थी?
हैरानी की बात तो यह भी है कि जिस अधिकारी को इस गुटबंदी को खत्म कराना चाहिए, वही इसको बढ़ावा देते हुए दिखाई दे रहे हैं। जानकारों का तो यह भी कहना है कि यह अधिकारी जो भी करते हैं उसके पीछे कोई बड़ा उद्देश्य होता है। इसलिए इस मैसेज के डालने के पीछे भी कोई बड़ा उद्देश्य छिपा हुआ होगा। क्यों कि इस अधिकारी को शिक्षा जगत का किंग कहकर योहि नहीं पुकारा जाता है। बडे-बड़े शिक्षाविद उनका आशीर्वाद लेने को तरसते हैं।
इधर तीनों शिक्षकों और उनसे जुड़े शिक्षकों को ग्रुप पर अधिकारी द्वारा मैसेज डालने के बाद लग रहा है कि यहां के कुछ शिक्षक इतना गिर गए हैं कि उन पर फर्जी आरोप लगाने पर उतर आए हैं। कल रात के बाद शिक्षकों में दुश्मनी और भी बढ़ गई है। एक मैसेज ने सब कुछ उलट पलट कर रख दिया है। इधर सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि अगर अधिकारी के पास किसी ने मैसेज किया है तो उन्होंने इस मैसेज को ग्रुप पर सार्वजनिक क्यों कर दिया? अगर तीनों शिक्षक वास्तव में दोषी हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? अगर दोषी नहीं है तो मैसेज भेजने वाले का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया जा रहा है? आखिर मैसेज का ग्रुप पर डालने का क्या औचित्य था? अधिकारी ने पता नहीं किस सोच के साथ मैसेज डाला था लेकिन उसका परिणाम यहां शिक्षकों की गुटबाजी बढ़ाने के रूप में देखने को मिल रहा है।