-उमाशंकर जैन-
हाथरस। जनपद की तीनो विधानसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। भाजपा प्रत्याशियों की जीत पर कोई भी सट्टा खाने को तैयार नही है। भाजपा प्रत्याशियों का सट्टा बाजार में भाव काफी गिरा हुआ है। भाजपा को इस विधानसभा के चुनाव में गहरा अघात लगने की संभावनाएं दिखाई दे रही है। हालांकि वर्तमान में भाजपा का तीनो विधानसभा क्षेत्रो में कब्जा है लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा का यह कब्जा बरकरार रहेगा, इसको लेकर भाजपा के नेताओं में ही संशय है। इसके पीछे कई कई कारण बताएं जा रहे है।
हाथरस विधानसभा क्षेत्र की भाजपा प्रत्याशी अंजुला माहौर का लगातार जिस तरह विरोध हुआ है उनकी छवि जनता के बीच किरकिरी हो गयी है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने ही उनका विरोध ही नही किया बल्कि उनकी जाति को लेकर भी प्रश्न चिंह खडे किए थे। अंजुला माहौर भले ही अपने आपको हाथरस निवासी होने का दावा कर रही हो, लेकिन अभी भी वह आगरा से ही आती-जाती है। उन्होंने अभी तक हाथरस में रहने के लिए कोई घर तक किराएं पर नही लिया है। जनता के बीच उनकी छवि बाहरी प्रत्याशी की बन गयी है। लोकसभा चुनाव में क्षेत्र के लोग सांसद राजवीर दिलेर के बाद किसी बाहरी प्रत्याशी को किसी भी कीमत पर अपना विधायक चुनने के लिए तैयार नहीं है।
सादाबाद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय को चुनाव मैदान में उतारकर तु्रप का इक्का चला है, लेकिन पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय के अस्वस्थ होने के चलते जनता के बीच भाजपा की लहर नहीं बनती दिख रही है। हालांकि लोगों का मानना है कि यदि पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय स्वस्थ होते और चुनाव मैदान में होते तो आसानी से मात नहीं दी जा सकती थी। उनकी गिनती राजनीति के धुरंधर खिलाडियों में होती है। हालांकि उनकी पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष सीमा उपाध्याय चुनाव की कमान संभाले हुए है। ब्राह्मण मतदाताओं का उन्हें सिम्पैथी वोट अवश्य मिल रहा है, लेकिन उनकी जीत को लेकर मतदाताओं में संशय बना हुआ है।
इसी तरह सिकंदराराऊ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने वर्तमान विधायक वीरेन्द्र सिंह राणा को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन क्षेत्र के मतदाताओं में उनको लेकर भारी गुस्सा है। भाजपा के करीब दो दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेता इस विधानसभा क्षेत्र से दावेदारी कर रहे थे। वह भी वीरेन्द्र सिंह राणा को पुनः विधायक नहीं देखना चाहते है। उन्हें पता है कि यदि उन्होंने वीरेन्द्र सिंह राणा को पुनः विधायक बनाया तो अगले विधानसभा चुनाव में भी उनका नम्बर नही आ पायेगा। यही कारण है कि वीएस राणा को लेकर भी मतदाता कोई स्पष्ट संकेत नही दे रहे है। भाजपा के जो कट्टर समर्थक है वह भी खुलकर नही बोल रहे है।