आगरा। डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल ने कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया है। राजभवन ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय फिलहाल कार्यवाहक कुलपति बने रहेंगे।
अधिवक्ता डॉ. अरुण कुमार दीक्षित ने कुलपति प्रोफेसर अशोक मित्तल पर भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए थे। पांच जुलाई को कुलाधिपति ने कुलपति प्रो. अशोक मित्तल को कार्य विरत कर दिया था। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय को आम्बेडकर विवि का कार्यवाहक कुलपति बनाया था। वहीं प्रोफेसर मित्तल पर लगे आरोपों के लिए सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी थी। कमेटी ने दो बार विश्वविद्यालय में आकर कुलपति पर लगे आरोपों की गंभीरता से जांच की। शिकायतकर्ता और कुलपति के बीच में जिरह भी कराई। कुलपति के पास एक भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं था। यही नहीं एक शिकायतकर्ता ने तो उन पर शिकायत वापस लेने के लिए रिश्वत देने के भी आरोप लगाए थे। कमेटी ने जांच कर अपनी रिपोर्ट राजभवन में दाखिल कर दी थी। कई दिनों से वहां से फैसला आने का इंतजार किया जा रहा था। 10 जनवरी को कुलपति मित्तल को राजभवन में बुलाया गया था। सूत्रों का कहना है कि कुलपति मित्तल पर बड़ी कार्यवाही हो रही थी। इस बात की भनक लगने पर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। कुलपति, कुलाधिपति के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में भी गए थे। हाईकोर्ट ने कहा था वह कुलपति को कोई राहत नहीं दे सकता है। डबल बेंच ने उनकी याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि प्रोफेसर मित्तल पर अधिवक्ता डॉ. अरुण दीक्षित ने जो वित्तीय और प्रशासनिक कार्यों में अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं। वह काफी गंभीर प्रतीत होते हैं। हाईकोर्ट ने जांच कर रही कमेटी के पाले में ही गेंद डाल दी थी। इसके बाद कुलपति को हाईकोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली थी। कुलपति मित्तल के द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद अधिवक्ता डॉ. अरुण कुमार दीक्षित का कहना है कि सच्चाई की जीत हुई है। इधर कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय के पास राजभवन से मेल आ गया है। इसके बाद वे आगरा आ रहे हैं।