आगरा। औटा पदाधिकारियों के द्वारा विश्वविद्यालय में सुधार को लंबे समय से संघर्ष किया जा रहा है। ज्ञापन पर ज्ञापन दिए जा रहे हैं। इसके साथ ही परीक्षा समिति में भ्रष्टाचार को खत्म करने और विश्वविद्यालय में सुधार को सुझाव दिए जा रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि किसी पर भी अमल नहीं हो रहा है। यह ऐसा पहला विश्वविद्यालय है जहां परीक्षा समिति के सदस्यों के विश्वविद्यालय में दिए जा रहे सुझाव नहीं माने जा रहे हैं। साथ ही जो निर्णय पास हो रहे हैं वह कागजों के अलावा कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे। सोमवार को भी औटा पदाधिकारियों ने कुलपति से मिलकर फिर से विश्वविद्यालय में सुधार को एक ज्ञापन सौंपा है। एक मांग में कुलपति से यह भी कहा है कि अगर आपने इस बिंदु पर कार्यवाही नहीं की तो आपके द्वारा भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने की बात समझी जाएगी। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह ज्ञापन भी शोपीस रहेगा या इस पर भी कुछ अमल होगा।
औटा द्वारा सोमवार को कुलपति को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि आपसे विगत वार्ता के क्रम में तथा पत्र के माध्यम से विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली में अपेक्षित सुधार की आशा में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाये गये थे। इनमें से अनेक अभी भी अनुत्तरित हैं। विश्वविद्यालय द्वारा इस दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठाये गये हैं। औटा कार्यकारिणी की बैठक में पारित प्रस्तावों के जरिए आपके समक्ष पुनः निम्नलिखित विषयों को इस प्रत्याशा में रखा जाता है कि आप इस दिशा में अपेक्षित कदम उठायेंगी।
1. विश्वविद्यालय की प्रथम एवं तृतीय सत्र की परीक्षाओं में अत्यधिक विलंब होने से न सिर्फ सत्र विलंब हुआ है बल्कि शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों में काफी रोष है। शीघ्र परीक्षा एवं परिणाम कार्यक्रम घोषित किया जाए।
2. शिक्षकों के विभिन्न संवर्गों की प्रोन्नतियों में विषय विशेषज्ञों की नियुक्ति बिना किसी मानदंड के पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई तथा केवल कुछ विशेषज्ञों को ही इस प्रकिया में अधिकाधिक अवसर दिये गये। इसकी जांच की जाए। अब संबद्ध महाविद्यालयों के अधिकाधिक प्रोफेसर्स, एसोसियेट प्रोफेसर्स की उपलब्धता को ध्यान में रख वरिष्ठता क्रम में विश्वविद्यालय द्वारा गठित विभिन्न समितियों में महाविद्यालय के शिक्षकों को अधिकाधिक अवसर प्रदान किए जाएं।
3. संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षकों के सभी संवर्गों की प्रोन्नति, जो कि प्रदेश सरकार के शासनादेश से नियमित होते हैं-विश्वविद्यालय अधिनियम अथवा परिनियमावली 2020-21 में कहीं भी इस इस प्रक्रिया हेतु गठित समिति में विश्वविद्यालय द्वारा विषय विशेषज्ञों को नामित करने के अलावा पृथक रूप से “कुलपति द्वारा नामित विश्वविद्यालय प्रतिनिधि” का कहीं कोई प्रावधान नहीं है। इस विश्वविद्यालय द्वारा “नामित कुलपति प्रतिनिधियों” ने प्रमोशन की प्रक्रिया में महाविद्यालय शिक्षकों से धन उगाही के अतिरिक्त इस प्रक्रिया में कोई योगदान नहीं दिया है। ध्यान रहे कि पूरे प्रदेश में अन्य किसी राज्य विश्वविद्यालय में महाविद्यालय शिक्षकों की प्रोन्नतियों में कुलपति प्रतिनिधि का कोई प्रावधान नहीं है। इसे संज्ञान में लेते हुए इस अनुचित शिक्षक विरोधी, भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाले नवाचार को तत्काल बंद किया जाए
4. वर्ष 2022 में विश्वविद्यालय की सेमेस्टर एवं मुख्य परीक्षाओं में केंद्र निर्धारण में भयंकर भ्रष्टाचार के मद्देनज़र प्रदेश शासन द्वारा जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की गई थी जिसने पूरी जांच के बाद भ्रष्टाचार में शामिल “महानुभावों” के नाम उजागर किए हैं तथा उनके खिलाफ सख्त करवाई करने की संस्तुति की है। औटा आपसे आग्रह करती है कि जांच समिति की संस्तुति के आधार पर कार्रवाई की जाये एवं इसमें आरोप सिद्ध व्यक्तियों को विश्वविद्यालय की किसी भी महत्वपूर्ण समिति में न रखा जाए। यदि ऐसे व्यक्ति किसी दायित्व का निर्वहन कर रहे हों तो इन्हें तत्काल वर्तमान दायित्व से मुक्त किया जाय। अन्यथा की स्थिति में इसे आपके द्वारा भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने की कार्रवाई समझी जाएगी। यह विश्वविद्यालय की गरिमा के सर्वथा प्रतिकूल है।
5. नई सेमेस्टर प्रणाली अथवा पुराने वार्षिक प्रणाली से आयोजित परीक्षाओं के आयोजन, निरीक्षण, उत्तरपुस्तिका मूल्यांकन आदि के दायित्व अधिकाधिक महाविद्यालयों के शिक्षकों को आवंटित किए जाएं।
6. विश्वविद्यालय की “शिक्षक कल्याण कोष समिति” की बैठक यथाशीघ्र बुलाई जाये जिससे कि विभिन्न आपदाओं से दुष्प्रभावित इच्छुक शिक्षकों अथवा उनके परिजनों के आवेदनों के सापेक्ष आर्थिक सहायता की जा सके।
7. विश्वविद्यालय के शोध संबंधित मूल्यांकन कार्य में महाविद्यालयों के शिक्षकों को भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जाय क्योंकि विश्वविद्यालय से कहीं अधिक संख्या में महाविद्यालयों में अब समान अर्हताधारी शिक्षक अधिक संख्या में कार्यरत हैं। पता चला है कि विश्वविद्यालय मुख्य कैंपस के शिक्षक इस कार्य में अवरोध उत्पन्न कर रहे जो कि सर्वथा अनुचित एवं निंदनीय है।
8. तत्कालीन कुलपति ने असंवैधानिक तरीके से बिना परीक्षा समिति के अनुमोदन के BHMS परीक्षाओं के पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया था।विश्वविद्यालय अधिनियम , परिनियमावली अथवा किसी शासनादेश द्वारा संबंधित पाठ्यक्रम में पुनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान नहीं है। भ्रष्टाचार की नीयत से बहुचर्चित BHMS की परीक्षा के पुनर्मूल्यांकन एवं परिणाम दोनों को रद्द किया जाए।ज्ञात हो कि इस गैर कानूनी कार्य का परीक्षा समिति ने भी अनुमोदन करने से इंकार कर दिया है। अतः BHMS के परिणाम को तत्काल निरस्त किया जाए।
9. परीक्षा संचालन हेतु बाह्य एजेंसी को नियोजित करने की बाध्यता न तो विश्वविद्यालय अधिनियम अथवा परिनियमावली में ही कहीं बाध्यकारी है। विश्वविद्यालय की आंतरिक परीक्षा, मूल्यांकन की प्रणाली ध्वस्त कर जब से आउटसोर्सिंग से बाह्य निजी एजेंसियाँ इस कार्य में लगाई जाने लगीं तभी से लगभग प्रत्येक परीक्षा में भ्रष्टाचार एवं अनियमितताएँ लगातार प्रकाश में आई हैं। अब तो यह कुख्यात हो चुका है कि इसमें कमीशनखोरी का एक बड़ा खेल है जिसमें ऊपर से नीचे तक परीक्षा की शुचिता भंग की जाती है। औटा यह मांग करती है कि अनेक विश्वविद्यालयों की भांति परीक्षाओं की गोपनीयता एवं शुचिता के मद्देनजर डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय द्वारा भी एक उच्चस्तरीय कंप्यूटर एवं प्रिंटिंग क्षमता युक्त, उत्तरदायी आंतरिक परीक्षा प्रणाली स्थापित की जाए।
10. विगत कई मुलाकातों में पूर्व कुलपतियों एवं आपसे भी संगठन ने शिक्षकों की समस्याओं के त्वरित निस्तारण हेतु विश्वविद्यालय स्तर पर एक “Teachers Grievance Cell” के गठन की माँग की थी तथा इस पर औपचारिक सहमति भी हुई थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस दिशा में अभी तक कोई पहल विश्वविद्यालय द्वारा नहीं किया गया है। कृपया आप इसे तत्काल नोटिफाई कराने का कष्ट करें। कुलपति को ज्ञापन देने वालों में अध्यक्ष डॉक्टर अनुराधा गुप्ता महामंत्री डॉ भूपेंद्र चिकारा, डॉ. निर्मला सिंह, डॉ. शिव कुमार सिंह, डॉ. शशिकांत पांडे, डॉ. गौरव कौशिक, डॉ. पूनम तिवारी, डॉ. अनुराग पालीवाल, डॉ. कुलदीप सिंह, डॉ एम पी सिंह, डॉ. सुनील बाबू चौधरी शामिल रहे।
खंदारी पर एक प्रोफेसर केंद्र बनाने से पहले कॉलेज संचालकों को बुला रहा, आरोप
महामंत्री डॉ. चिकारा ने कुलपति से कहा कि खंदारी पर एक प्रोफेसर केंद्र निर्धारण का काम कर रहा है। वह तीन महीने से कॉलेज संचालकों को अपने पास बुला रहा है। क्या विश्वविद्यालय में ऐसी भी कोई समिति बनी है, जो परीक्षा समिति से बड़ी है। क्योंकि परीक्षा समिति की जगह पर्दे के पीछे वाली समिति की ही चल रही है। कुलपति ने कहा है कि ऐसा नहीं है उन्हें सीसीटवी नेटवर्क चेक करने की जिम्मेदारी दी गई है। महामंत्री ने कुलपति से यह भी कहा कि 98% बच्चों से हम जुड़े हुए हैं और दीक्षांत समारोह वाली समिति में विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं, जबकि वह तो सिर्फ 2% ही छात्रों से जुड़े हुए हैं।