-गौरव प्रताप सिंह-
आगरा। गुरुवार को आस्था के महापर्व छठ पूजा पर यमुना घाटों पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा। महिलाएं नंगे पैर यमुना में स्नान के लिए पहुंची। इसके बाद महिलाओं ने घाट पर वेदी बनाकर पूजा की। इसके साथ ही सूप में फल, ठेकुआ आदि सामग्री सहित पानी व गाय के दूध से उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया।
गुरुवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को श्रद्धालुओं ने छठ का पहला अर्घ्य दिया। बल्केश्वर, एत्माद्दौला आदि क्षेत्रों में अर्घ्य देने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। व्रतियों का दोपहर 2:00 बजे से यमुना घाट पहुंचना शुरू हो गया था। कई लोगों ने घरों की छतों पर अस्थाई तालाब बना कर अर्घ्य दिया। व्रतियों के रंग बिरंगे परिधान और भक्ति में लोकगीत कदम कदम पर शांति का संदेश देते रहे।
कमला नगर में यमुना घाट पर अपर जिला जज ज्ञानेन्द्र राव भी अपनी पत्नी निरूपमा राव के साथ पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचे। निरुपमा राव ने सूर्य को अर्घ्य दिया। वह बोलीं कि वह हर साल व्रत रहती हैं, उन्होंने यह भी कहा कि छठ मैया की पूजा से मन को शांति मिलती है। शरीर का कष्ट भी दूर होता है। छठ मैया का ही करिश्मा है कि इतना कठिन व्रत भी आसान लगता है। छठ मैया की भक्ति से शक्ति का संचार होता है। निर्जल व्रत में भी थकान महसूस नहीं होती
पुलिस अपर आयुक्त केशव चौधरी ने भी अपनी पत्नी प्राची चौधरी के साथ पूजा की। प्राची चौधरी ने सूर्य को अर्घ्य दिया और बताया कि छठ पूजा की शुरुआत बिहार के मुंगेर से हुई थी। कुछ प्रचलित कथाओं से इस बारे में पता चलता है। द्रौपदी ने अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और बेहतर जीवन के लिए छठ का व्रत रखा था।
पूर्वांचल सद्भाव समिति के द्वारा भी घाट पर आरती का आयोजन किया गया। पुलिस अपर आयुक्त केशव चौधरी ने कहा कि कार्तिक माह में स्नान, पूजा और दान करने का विशेष महत्व होता है। इस माह में भगवान विष्णु जल में ही निवास करते हैं। डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का मतलब है कि भगवान विष्णु सूर्य देव के रूप और जल में भगवान विष्णु की अप्रत्यक्ष रूप से दोनों की साथ में पूजा की जाती है। समिति के सचिव राकेश शुक्ला ने कहा कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे मान्यताएं हैं।
छठ पर्व पर क्यों दिया जाता है सूर्य देव को अर्घ्य, जानें
छठ पूजा के दौरान डूबते और उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा है, भगवान सूर्य पंचदेवों में से एक हैं और इसी कारण किसी भी शुभ काम की शुरुआत पंचदेवों की पूजा के साथ की जाती है। कहते हैं सूर्य देव को अर्घ्य देने से नकारात्मक विचार खत्म होते हैं, इससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है. सूर्य को अर्घ्य चढ़ाकर सूर्य मंत्र का और उनके नाम का जाप करना चाहिए। छठ पूजा पर सूर्य देव को अर्घ्य चढ़ाने के साथ-साथ छठी माता की पूजा की जाती हैं।
छठी मैया और सूर्य देव का रिश्ता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव की बहन छठी माता हैं, ऐसे में छठ की पूजा में छठी मैया की विधि विधान से पूजा अर्चना करने के साथ ही सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता हैं। कहते हैं इन दोनों के आशीर्वाद से संतान को अच्छा स्वास्थ्य मिलता है और घर में सुख शांति और समृद्धि आती है।
छठ से जुड़ी हुई मान्यताएं
छठ पर्व को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, कहते हैं कि प्रकृति ने खुद को छह भागों में बांटा है, इनमें छठे भाग को मातृ देवी कहा जाता है। छठ माता को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कहा जाता हैं, इतना ही नहीं देवी दुर्गा के छठे रूप यानी कि कात्यायनी को भी छठ माता कहते हैं। कहते हैं छठ माता संतान की रक्षा करने वाली देवी होती हैं, इस कारण संतान के सौभाग्य, लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए छठ पूजा का व्रत किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, बिहार में देवी सीता, कुंती और द्रौपदी ने भी छठ पूजा का व्रत किया था और इस व्रत के प्रभाव से उनके जीवन के कष्ट दूर हो गए थे।