ऋषि चौहान
एटा। बसपा सुप्रीमो मायावती की पार्टी बसपा भी अब कांग्रेस के रास्ते पर है जो बीते 33 सालों से खाता खोलने के लिए तरस रही है। कांग्रेस जैसी परिणति के लिए बसपा भी तत्पर नजर आ रही है। हालत इतनी दयनीय है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में 97 प्रतिशत सीटों पर कांग्रेस और 72 प्रतिशत सीटों पर बसपा अपने प्रत्याशियों की जमानत गवां बैठी है। एटा और कासगंज की 7 सीटों पर कमोबेश बसपा की यही हालत है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या इन चुनावों में बसपा के हाथी का मतदाताओं ने साथ छोड़ दिया है।
आज कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2.08 रह गया है। बसपा इन चुनावों में मात्र एक सीट पा सकी है। 290 सीटों पर उसके प्रत्याशी जमानत जब्त करा बैठे। भाजपा और सपा की लड़ाई में अधिकांश सीटों पर बसपा तीसरे नंबर पर रही। एटा जिले की अलीगंज विधानसभा सीट पर बसपा प्रत्याशी जुनैद मियां 17687 वोट पा सके तो एटा सीट पर सपा विद्रोही और बसपा प्रत्याशी अजय यादव 26648 मत पा सके। मारहरा सीट पर बसपा प्रत्याशी योगेश 16792 मत पा सके तो जलेसर सुरक्षित सीट से बसपा प्रत्याशी आकाश जाटव 19303 मत पा सके। यह सभी प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। जलेसर में आगरा के जूता व्यवसाई आकाश चुनाव लड़े थे। वैसे भी जलेसर की सुरक्षित सीट पर सवर्ण मतदाताओं के निर्णायक होने की स्थिति में जाट प्रत्याशी के लिए ज्यादा लाभ होने की स्थिति नहीं है। इतिहास गवाह है कि अब तक हुए चुनावों में सिर्फ दो बार ही जाट प्रत्याशी इस सीट से चुनाव जीत सके हैं।
बसपा की ऐसी ही दुर्गति कासगंज की तीनों सीटों पर हुई। एटा और कासगंज की सातों सीटों में किसी पर भी बसपा चुनावी लड़ाई जीतने की स्थिति में नहीं थी। पटियाली सीट पर नीरज मिश्रा ठीक-ठाक लड़ाई लड़े।
जमानत जब्त होने का मानक यह है कि लोकसभा चुनाव में कुल पड़े मतों का 1 / 6 मत यदि प्रत्याशी को ना मिले तो 25000 की जमानत राशि जब्त हो जाती है। इसी क्रम में विधानसभा चुनाव में 1/6 मत न मिलने की स्थिति में प्रत्याशी के 10 हजार की जमानत राशि जप्त हो जाती है।
यह बताने की जरूरत नहीं है कि एक दशक पूर्व जिस मायावती सरकार ने एटा और कासगंज में 3 सीटें मिलने से उत्साहित होकर एटा और कासगंज को विभाजित कर काशीराम नगर नाम से नया जिला बनाया था। मायावती का धन लाभ दोनों जिलों में खाता खोलने और जमानत बचाने के लिए भी बेबस नजर आ रहा है। शायद बसपा सुप्रीमो मायावती बसपा के जमीनी हालात से वाकिफ थी। इसीलिए उन्होंने एटा और कासगंज में कोई भी जनसभा नहीं की। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या बसपा भी कांग्रेस की तर्ज पर इन दोनों जिलों से विदा हो रही है। इस चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा मतों का भाजपा में चले जाना इस बात की ओर इशारा कर रहा है।