लखनऊ। उत्तर प्रदेश में हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में धूम मचाने वाली छोटी पार्टियां अब बड़े दलों से सौदेबाजी कर रही हैं। जाति आधारित और सीमित प्रभाव वाले इन छोटे दलों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। दोध्रुवीय प्रतियोगिता से उन्हें अत्यधिक लाभ हुआ है। ये दल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों को पीछे धकेलने में कामयाब रहे हैं।
भाजपा के दोनों सहयोगी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी ने ने अच्छा प्रदर्शन किया है। अपना दल ने 17 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की, जिस पर उसने चुनाव लड़ा था। अपना दल, जो एक कुर्मी-केंद्रित पार्टी है, की स्थापना 1995 में डॉ. सोनेलाल पटेल ने की थी। बाद में यह अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व में अपना दल (सोनेलाल) और उनकी पत्नी कृष्णा पटेल के नेतृत्व में अपना दल (कामेरावादी) में विभाजित हो गई। अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाला अपना दल गुट भाजपा के साथ गठबंधन में है, जबकि कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाला दूसरा गुट समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में है। अपना दल 12 सीटों के साथ कांग्रेस से काफी आगे है, जिसे दो सीटों से संतोष करना पड़ा और बसपा, जो सिर्फ एक सीट पर कामयाब रही।
सूत्रों के मुताबिक, अपना दल अब सरकार में बड़ा हिस्सा चाहता है। अपना दल के एक नेता ने कहा कि हमें कम से कम चार मंत्री पद मिलने चाहिए। हम बिना किसी सौदेबाजी के भाजपा के साथ रहे हैं और अब हमारे योगदान को मान्यता दी जाए। एक अन्य भाजपा सहयोगी निषाद पार्टी ने राज्य चुनावों में छह सीटें जीती हैं। निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद एमएलसी हैं, उनके बेटे प्रवीण निषाद सांसद हैं और उनके छोटे बेटे सरवन निषाद विधायक चुने गए हैं। राजनीति में अपने पूरे परिवार के साथ संजय निषाद अब उपमुख्यमंत्री के रूप में नामित होना चाहते हैं। वे कहते हैं कि मेरा समुदाय यही चाहता है और भाजपा उनकी भावनाओं से वाकिफ है। संजय निषाद ने जनवरी 2013 में राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद का गठन किया था और निषादों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग की थी और 2016 में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत कराया था। निषाद पार्टी ने 2017 का चुनाव पीस पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ा था और ज्ञानपुर सीट पर जीत हासिल की थी। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को लेकर मुखर रहे निषाद ने अपने बेटे प्रवीण को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने पर खुलकर निराशा जताई थी। वहीं, एक भाजपा नेता ने स्वीकार किया है कि वे संजय निषाद से परेशानी महसूस कर रहे हैं, जो राजनीतिक रूप से अति-महत्वाकांक्षी हैं।